जिस को देखा सो यहाँ दुश्मन-ए-जाँ है अपना दिल को जाने थे हम अपना सो कहाँ है अपना क़िस्सा-ए-मजनूँ-ओ-फ़र्हाद भी इक पर्दा है जो फ़साना है यहाँ शरह-ओ-बयाँ है अपना वस्फ़ कहने में तिरे हुस्न के शर्मिंदा हूँ उस के क़ाबिल न ज़बाँ है न दहाँ है अपना जिस को जाना हो भला उस को बुरा क्या कहिए गो कि बद-वज़अ' है पर अब तो मियाँ है अपना