जिस को देखो एहतिसाब-ए-ज़ीस्त से ग़ाफ़िल है आज रंज-ए-माज़ी है न फ़िक्र-ए-हाल-ओ-मुस्तक़बिल है आज मर्हबा सद मर्हबा जज़्ब-ए-वफ़ा कामिल है आज वो अदा-ए-बे-नियाज़ी ग़म-गुसार-ए-दिल है आज अपने हक़ में माइल-ए-लुत्फ़-ओ-करम क़ातिल है आज हर अदा-ए-ख़श्मगीं हिम्मत फ़ज़ा-ए-दिल है आज बज़्म-ए-अज़ा बनी हुई है बज़्म-ए-ज़ौक़-ओ-शौक़ दौर-ए-नशात मोजिब-ए-दौरान-ए-सर है आज मौक़ूफ़ है लबों की तबस्सुम से रस्म-ओ-राह आह-ओ-फ़ुग़ाँ वज़ीफ़ा-ए-शाम-ओ-सहर है आज जब तुम हमारे हो न सके हम नहीं रहे लो दास्तान-ए-मेहर-ओ-वफ़ा मुख़्तसर है आज