जिस में दिलकश वफ़ा का फूल नहीं ऐसी चाहत मुझे क़ुबूल नहीं तू जिसे रौंद के गुज़र जाए मैं तिरी राह की वो धूल नहीं क्यों हो लाहक़ मुझे पशेमानी इश्क़ करना तो कोई भूल नहीं मेरी ख़ुशियाँ भी उस के साथ गईं कौन कहता है मैं मलूल नहीं वो मोहब्बत का रास्ता कब है जिस में पत्थर नहीं बबूल नहीं जैसे गुज़रे गुज़ार दे इस को ज़िंदगी मुख़्तसर है तूल नहीं शाइरी ख़ुद चमक उठेगी 'सहर' ख़ुद-नुमाई मेरा उसूल नहीं