जिस ने बाँधे हैं सारे पर मेरे उस के ही गिर्द हैं सफ़र मेरे एक ख़्वाहिश ने कितना तोड़ दिया खो गए मुझ से सब हुनर मेरे ग़म ये जाते नहीं किसी जानिब हो गए हैं कुछ इस क़दर मेरे ग़ैर महसूस बेड़ियाँ हैं कई यूँ बंधे तुझ से सब सफ़र मेरे यूँ तो कितनी दुआएँ थीं लेकिन बे-समर ही रहे शजर मेरे दे के आज़ादियाँ मुझे 'अंजुम' रोज़ उस ने तराशे पर मेरे