जिस ने तिरी बेबाक अदा को नहीं देखा वल्लाह कि आँखों से फ़ज़ा को नहीं देखा क्यूँ मुझ को सुनाए न भला क़िस्सा-ए-जन्नत वाइ'ज़ ने तिरे मेहर-ओ-वफ़ा को नहीं देखा अफ़्सोस कि सुन ही के अभी हँसते हो अफ़्सोस तुम ने जो अगर आह-ओ-बुका को नहीं देखा घबराए हुए फिरती है क्यूँ मेरे तरह से तासीर ने क्या मेरी दुआ को नहीं देखा बेबाकियाँ देखीं हैं तिरी बज़्म-ए-अदू में आँखों में तिरी शर्म-ओ-हया को नहीं देखा कहते हैं ग़लत होवेगा दुश्मन का गुज़र ख़ाक कूचे में तिरे बाद-ए-सबा को नहीं देखा मा'लूम नहीं तुम को वफ़ा कहते हैं किस को तुम ने अभी अरबाब-ए-वफ़ा को नहीं देखा क्या ख़ाक हो उम्मीद मुझे उस से वफ़ा की मैं ने तो कभी उस की जफ़ा को नहीं देखा नाज़ाँ न हों क्यूँ ख़िज़र भला उम्र पे अपनी हज़रत ने तिरा ज़ुल्फ़-ए-रसा को नहीं देखा पर्दे से निकलते नहीं और कहते हैं मुझ से पहचानोगे क्या हम को ख़ुदा को नहीं देखा आगे तिरी आँखों के झुकाए हुए आँखें कब आहु-ए-बावर-ब-ख़ता को नहीं देखा क्यूँ हज़रत-ए-मूसा की तरह ना'श में 'नस्साख़' गर तुम ने बुत-ए-होश-रुबा को नहीं देखा