जिस ने तुझ हुस्न पर निगाह किया नूर-ए-ख़ुर्शीद फ़र्श-ए-राह किया हक़ ने अपने करम सती मुज कूँ मुल्क-ए-ख़ूबी का पादशाह किया मश्क़-ए-ग़फ़लत से तीरा-बातिन ने सफ़्हा-ए-ज़िंदगी सियाह किया हौज़-ए-कौसर का तिश्ना-लब कब है इस ज़नख़दाँ की जिस ने चाह किया कूचा-ए-ज़ुल्फ़ में गया जब दिल बर्ग-ए-सुम्बुल कूँ ज़ाद-ए-राह किया बर्क़-ए-ख़िर्मन है जान-ए-दुश्मन का दर्द सीं जिस ने एक आह किया मत जला अब 'सिराज' कूँ ज़ालिम शोला-ए-ग़म कूँ उज़्र-ख़्वाह किया