जिस ने तुझे ख़ल्वत में भी तन्हा नहीं देखा उस देखने वाले का कलेजा नहीं देखा उफ़ उफ़ वो उचटती सी निगाह-ए-ग़लत-अंदाज़ इस तरह से देखा है कि गोया नहीं देखा जिस गुल को ये सब ढूँडती फिरती हैं हवाएँ तू ने तो उसे नर्गिस-ए-शहला नहीं देखा दम आँखों में अटका है ख़ुदा के लिए आओ फिर ये न गिला हो मिरा रस्ता नहीं देखा 'शाइर' ये ग़ज़ल लिक्खी है या जड़ दिए मोती दुनिया में क़लमकार भी ऐसा नहीं देखा