जिस से मिल बैठे लगी वो शक्ल पहचानी हुई आज तक हम से यही बस एक नादानी हुई सैकड़ों पर्दे उठा लाए थे हम बाज़ार से गुत्थियाँ कुछ और उलझीं और हैरानी हुई हम तो समझे थे कि उस से फ़ासले मिट जाएँगे ख़ुद को ज़ाहिर भी किया लेकिन पशेमानी हुई क्या बताएँ फ़िक्र क्या है और क्या है जुस्तुजू हाँ तबीअत दिन-ब-दिन अपनी भी सैलानी हुई क्यूँ खिलौने टूटने पर आब-दीदा हो गए अब तुम्हें हम क्या बताएँ क्या परेशानी हुई