जिस से वफ़ा की थी उम्मीद उस ने अदा किया ये हक़ औरों से इर्तिबात की और मुझे दिया क़लक़ तेरी जफ़ा वफ़ा सही मेरी वफ़ा जफ़ा सही ख़ून किसी का भी नहीं तो ये बता है क्या शफ़क़ मुसहफ़-ए-रुख़ ही दर्द था और न था कोई ख़याल इश्क़ ने ख़ुद पढ़ा दिया हुस्न का एक इक वरक़ और तो हैं रिवायतें मज़हब-ए-इश्क़ है सहीह रोज़ अता हो शौक़ से वही नई नया सबक़ जज़्बा-ए-दिल ग़लत सही कुछ तो सुबूत-ए-इश्क़ देख तफ़्ता जिगर हवास गुम ख़ीरा नज़र कलेजा शक़ 'सेहर' तो मुज्तहिद है ख़ुद क्यूँ हो मुक़ल्लिद और का बहर ओ रदीफ़ ओ क़ाफ़िया है फ़न्न-ए-शाइरी अदक़