जिस वक़्त भी मौज़ूँ सी कोई बात हुई है माहौल से नग़्मात की बरसात हुई है मय-ख़ाने में है शब के गुज़रने का ये आलम महसूस ये होता है अभी रात हुई है है अरसा-ए-महशर भी कोई कुंज-ए-गुलिस्ताँ! देखो तो कहाँ उन से मुलाक़ात हुई है ये देख कि किस हाल में हम ज़िंदा हैं अब तक मत पूछ कि कैसे बसर-औक़ात हुई है इम्काँ निकल आए हैं 'अदम' सुल्ह के कुछ कुछ कल शब ग़म-ए-हस्ती से मिरी बात हुई है