जिसे कल रात भर पूजा गया था वो बुत क्यूँ सुब्ह को टूटा हुआ था अगर सच की हक़ीक़त अब खुली है तो जो अब तक नज़र आया था क्या था अगर ये तल्ख़ियों की इब्तिदा है तो अब तक कौन सा अमृत पिया था खुला है मुझ पे अब दुनिया का मतलब मगर ये राज़ पहले भी खुला था मैं जिस में हूँ ये दुनिया मुख़्तलिफ़ है जहाँ मैं था वो आलम दूसरा था मैं ख़ुद को मार कर पहुँचा यहाँ तक तो याद आया कि मैं तो मर चुका था मिरी मैं और तिरी मैं दोनों हारीं मैं बंदा हूँ मगर तू तो ख़ुदा था मैं अब जो मुँह छुपाए फिर रहा हूँ तो क्या मैं वाक़ई चेहरा-नुमा था