जिसे लब पर न लाना चाहता हूँ By Ghazal << मुक़द्दर आज-कल कुछ मेहरबा... जादू तिलिस्म सेहर फ़ुसूँ ... >> जिसे लब पर न लाना चाहता हूँ वो अफ़्साना सुनाना चाहता हूँ कुछ आँसू चाहता हूँ आज पीना कुछ आँखों से बहाना चाहता हूँ तर-ओ-ताज़ा रहें जो ता-क़यामत कुछ ऐसे गुल खिलाना चाहता हूँ मुझे तू आज़माना चाहता है तुझे मैं आज़माना चाहता हूँ Share on: