जिस्म के नेज़े पर जो रक्खा है उस मिरे सर में जाने क्या क्या है बुत बनाया मिरे हुनर ने मुझे मेरे हाथों ने मुझ को तोड़ा है बस्तियाँ उजड़ी हैं तो सन्नाटा मेरी आवाज़ में समाया है मैं भी बे-जड़ का पेड़ हूँ शायद मुझ को भी डर हवा से लगता है शहर में कुछ इमारतों के सिवा अब मिरा कौन मिलने वाला है कहने सुनने को कुछ नहीं बाक़ी मिलना-जुलना अजब सा लगता है