जिस्म की क़ैद से इक रोज़ गुज़र जाओगे By Ghazal << बग़ैर नक़्शे के सारे मकान... चाँद उभरा न मिरे जिस्म से... >> जिस्म की क़ैद से इक रोज़ गुज़र जाओगे ख़ुश्क पत्तों की तरह तुम भी बिखर जाओगे तुम समुंदर की रिफ़ाक़त पे भरोसा न करो तिश्नगी लब पे सजाए हुए मर जाओगे वक़्त इस तरह बदल देगा तुम्हारे ख़द-ओ-ख़ाल अपनी तस्वीर जो देखोगे तो डर जाओगे Share on: