जो आए वो हिसाब-ए-आब-ओ-दाना करने वाले थे गए वो लोग जो कार-ए-ज़माना करने वाले थे उड़ाने के लिए कुछ कम नहीं है ख़ाक घर में भी वो मौसम ही नहीं हैं जो दिवाना करने वाले थे मिरी गुम-गश्तगी मेरे लिए छत बन गई वर्ना ये दुनिया वाले मुझ को बे-ठिकाना करने वाले थे न देते सारे मंज़र अक्स ही थोड़े से दे देते हम आवारा कहाँ तज़ईन-ए-ख़ाना करने वाले थे समुंदर ले गया हम से वो सारी सीपियाँ वापस जिन्हें हम जमअ कर के इक ख़ज़ाना करने वाले थे 'ज़फ़र' बे-ख़ानमाँ अपने को ख़ुद ही कर लिया तुम ने ये कार-ए-ख़ैर तो अहल-ए-ज़माना करने वाले थे