जो अश्क दिल पे गिरे वो शुमार कर न सकी मैं उस के जज़्बों को दिल पे सवार कर न सकी वो कर रहा था बग़ावत पे मुझ को आमादा मगर क़बीले की इज़्ज़त पे वार कर न सकी वो सब्ज़ बाग़ दिखाता था मुझ को वा'दों के ये आँख उस पे मगर इंहिसार कर न सकी बिछड़ के तुझ से मिरी ख़ुद से जंग जारी रही मैं दिल की दुनिया कभी साज़गार कर न सकी वो मेरे साथ है हम-ज़ाद की तरह 'ऐमन' मैं जिस पे हालत-ए-दिल आश्कार कर न सकी