जो भी है हस्ब-ए-हाल खींचेंगे उस का नक़्शा कमाल खींचेंगे चुटकी काटेगी वो शरारत से और हम उस के बाल खींचेंगे तुझ को मुझ से मिलाने वाले लोग दोनों जानिब से माल खींचेंगे यार लम्हों में सामने होगा इस तरह माह-ओ-साल खींचेंगे भरने वाला है ये मोहब्बत से वक़्त पर अपना जाल खींचेंगे कोई सिगरेट मज़ा न देगा तो फिर कैपस्टन पाल मॉल खींचेंगे देने होंगे जवाब आख़िर-कार तुझ को मेरे सवाल खींचेंगे ज़ख़्म ग़ुर्बत के सब रक़म कर के कर्ब-ए-क़हत-उर-रिजाल खींचेंगे आख़िर आना पड़ेगा मेरे लिए तुझ को मेरे ख़याल खींचेंगे गर ये मुमकिन हुआ तो अपनी तरफ़ एक दो ख़ुश-ख़िसाल खींचेंगे इतने बिगड़े हैं डर नहीं बाक़ी क्या बड़े अपने गाल खींचेंगे मेरी ग़ुर्बत मिलेगी विर्से में इस को मेरे अयाल खींचेंगे तोड़ दें डोर हिज्र की 'आबिद' कब तलक ये वबाल खींचेंगे