जो भी यकजा है बिखरता नज़र आता है मुझे जाने यूँ है भी कि ऐसा नज़र आता है मुझे चश्म-ए-वा में तो वही मंज़र-ए-ख़ाली है जो था मूँद लूँ आँख तो क्या क्या नज़र आता है मुझे माइल-ए-अर्ज़-ए-तमन्ना है न है वक़्फ़-ए-मलाल ऐ मिरे दिल तू ठहरता नज़र आता है मुझे पस-ए-नज़्ज़ारा कोई ख़्वाबأ-ए-गुरेज़ाँ ही न हो देखने में तो तमाशा नज़र आता है मुझे बाँध लूँ रख़्त-ए-सफ़र लौट चलूँ घर की तरफ़ तिरी जानिब से इशारा नज़र आता है मुझे तुझे क्यूँकर हो ये मालूम मिरे माह-ए-तमाम दाग़-ए-दिल कैसे सितारा नज़र आता है मुझे कश्ती-ए-जाँ यही इक-आध भँवर और है बस कहीं नज़दीक किनारा नज़र आता है मुझे देखने देखने में फ़र्क़ हुआ करता है तुम्ही बतलाओ कि कैसा नज़र आता है मुझे