जो बुझ गए उन्हीं को चराग़ों का नाम दो बे-चेहरगी को अपनी गुलाबों का नाम दो जो है हक़ीक़ी उस को तो अब भूल जाओ तुम बे-जान पत्थरों को ख़ुदाओं का नाम दो हमदर्दियाँ ख़ुलूस-ओ-मोहब्बत कि दोस्ती इस दौर में इन्हें भी गुनाहों का नाम दो है वक़्त का तक़ाज़ा बुरी हरकतों को तुम जिद्दत कहो हसीन अदाओं का नाम दो दहशत-गरी जहाँ ये पनपती है रात दिन संतों का मुँह कहो कि गुफाओं का नाम दो इस में घुटन है ज़हर है गर्द-ओ-ग़ुबार है फिर भी इसे शगुफ़्ता फ़ज़ाओं का नाम दो डूबे थे फिर भी साफ़ निकल आए ऐ 'लतीफ़' इस को अदा कहो कि दुआओं का नाम दो