जो चाहते हो कि मंज़िल तुम्हारी जादा हो तो अपना ज़ेहन भी इस के लिए कुशादा हो वो याद आए तो अपना वजूद ही न मिले न याद आए तो मुझ को थकन ज़ियादा हो पहाड़ काट दूँ सूरज को हाथ पर रख लूँ ज़रा ख़याल में शामिल अगर इरादा हो समझ सको जो ज़माने के तुम नशेब-ओ-फ़राज़ तो अपने अहद के बच्चों से इस्तिफ़ादा हो ये सोचता हूँ वो जिस दम मिरी तलाश करे हक़ीक़तों का मिरे जिस्म पर लिबादा हो है जुस्तुजू मुझे इक ऐसे शख़्स की यारो जो ख़ुश-मिज़ाज भी हो और दिल का सादा हो