जो दर्द-ए-जिगर में कमी हो तो जानूँ क़यामत अगर मुल्तवी हो तो जानूँ मुक़द्दर न मेरा बिगड़ कर बनेगा किसी की भी बिगड़ी बनी हो तो जानूँ मुझे तेरी फ़ुर्क़त में जो बे-कली है तुझे भी वही बे-कली हो तो जानूँ शब-ए-ग़म में कल मैं ने तारे गिने हैं ज़रा आँख मेरी लगी हो तो जानूँ रक़ीबों की हर बात करते हो पूरी मिरे साथ में मुंसिफ़ी हो तो जानूँ पस-ए-मर्ग 'नादिर' वो आए भी तो क्या इनायत अगर जीते जी हो तो जानूँ