जो दस्त-ए-अहल-ए-मोहब्बत को इख़्तियार मिले गदा को फूल मिलें बादशह को ख़ार मिले ये शहर-ए-शीशागराँ है यहाँ यही होगा कि संग एक मिला आइने हज़ार मिले हमेशा होंटों पे उस के हँसी नज़र आई हमारी आँखों में आँसू भी बे-शुमार मिले गए थे शहर से बाहर उदासियाँ धोने और उस सफ़र में सब आईने पर ग़ुबार मिले मिला न दोस्त भी कोई पुरानी गलियों में सब अपने शहर में मसरूफ़-ए-कारोबार मिले कभी तो झाँक ज़रा मंज़र-ए-निगह से उधर कभी तो आक़ा कोई महव-ए-इंतिज़ार मिले बताना उस को कि सब ढूँडते रहे हैं उसे जो रास्ते में कभी तुम को ‘ताजदार’ मिले