जो दिल में ख़ून-ए-तमन्ना किया न करते हम तो मिस्ल-ए-शोला भड़क कर जला न करते हम अगर न कश्मकश-ए-वहशत-ए-जुनूँ होती तो चाक जैब-ओ-गरेबाँ किया न करते हम अगर न ख़ातिर-ए-सय्याद पर गराँ होते तो यूँ तड़प के क़फ़स से उड़ा न करते हम उमीद नक़्श पे आने की तेरे गर होती तो अपने जीने की हरगिज़ दुआ न करते हम न होते तेरे तग़ाफ़ुल के हम अगर कुश्ते तो ज़ेर-ए-तेग़ कभी दम लिया न करते हम जो दाग़-ए-सीना-ए-आशिक़ न मशअ'ली होता तो आफ़्ताब से निस्बत दिया न करते हम