जो गिर के मिरे हाथ से टूटा भी नहीं था ऐसा भी नहीं है कि वो शीशा भी नहीं था जब मेरी हिफ़ाज़त के ये सामान नहीं थे तब इतना मिरी जान को ख़तरा भी नहीं था क्या जानिए क्यों भर सी गई मेरी तबीअत जी भर के तिरे शहर को देखा भी नहीं था जिन के लिए ये जान हथेली पे रही है होगा मिरा क़ातिल कभी सोचा भी नहीं था मालूम नहीं कैसे निकल आए भँवर से हर चंद के तिनके का सहारा भी नहीं था सर रक्खा है सज्दे में बहुत सोच समझ कर बंदे के लिए और कोई चारा भी नहीं था