जूँ गुल अज़-बस-कि जुनूँ है मिरा सामान के सात चाक करता हूँ मैं सीने को गरेबान के सात चश्म-ए-तर हैं मिरी सहरा है जुनूँ की ममनूँ रब्त है रोने कूँ मेरे इसी दामान के सात बे-ख़ुदी का है मज़ा शोर-ए-असीरी से मुझे रंग उड़े है मिरा ज़ंजीर की अफ़्ग़ान के सात जूँ बगूला हूँ मैं मिन्नत-कश-ए-सहरा-गर्दी ज़िंदगानी है मिरी सैर-ए-बयाबान के सात 'उज़लत' इस बाग़ में लाला सा हूँ मैं दर्द-नसीब दिल-ए-ज़ख़्मी से उगा दाग़-ए-नमक-दान के सात