जो हमारे सफ़र का क़िस्सा है वो तिरी रहगुज़र का क़िस्सा है सुब्ह तक ख़त्म हो ही जाएगा ज़िंदगी रात भर का क़िस्सा है दिल की बातें ज़बाँ पे क्यूँ लाओ घर में रहने दो घर का क़िस्सा है कोई तलवार क्या बताएगी दोश का और सर का क़िस्सा है होश आ जाए तो सुनाऊँगा चश्म-ए-दीवाना-गर का क़िस्सा है चलते रहना तो कोई बात न थी सिर्फ़ सम्त-ए-सफ़र का क़िस्सा है जीते-जी ख़त्म हो नहीं सकता ज़िंदगी उम्र भर का क़िस्सा है शाम को हम सुनाएँगे तुम को शब-ए-ग़म की सहर का क़िस्सा है तेरे नक़्श-ए-क़दम की बात नहीं सिर्फ़ शम्स ओ क़मर का क़िस्सा है दामन-ए-ख़ुश्क लाओ फिर सुनना ये मिरी चश्म-ए-तर का क़िस्सा है चंद तिनके न थे नशेमन के बाग़-ओ-शाख़-ओ-शजर का क़िस्सा है हल्क़ में चुभ रहे हैं काँटे से लब पे गुल-हा-ए-तर का क़िस्सा है मेरी बर्बादियों का हाल न पूछ एक नीची नज़र का क़िस्सा है उसी बेदाद-गर से कह दे 'सबा' उसी बेदाद-गर का क़िस्सा है