जो हो चुका है जो होना है उस का संगम है अभी से आगे मुअ'ल्लक़ है पीछे मुबरम है हमारे शहर के हर सच में झूट मुदग़म है यहाँ सफ़ेद-ओ-सियह की तमीज़ मुबहम है बस एक मैं से अज़ाज़ील हो गया इबलीस और इक दुआ की बदौलत ख़लीफ़ा आदम है न हा-ओ-हू न कोई चीख़ है सर-ए-मक़्तल हमारे शहर में कैसा ये हू का आलम है किसी के शौक़ ने गंगा का रूप धार लिया किसी के इश्क़ का इज़हार आब-ए-ज़मज़म है कहाँ पे भेज दिया है ये कैसी दुनिया है कि ज़िंदगी तो यहाँ एक जेहद-ए-पैहम है जो हाल पूछने आए हैं मेरे ज़ख़्मों का किसी के हाथ नमक है किसी के मरहम है ये किस ने सोच का इस शब दिया जलाया है फ़ज़ा-ए-शहर पे अब रौशनी का परचम है ये क्या सवाल उठाया है फिर 'हिदायत' ने फ़क़ीह-ए-शहर का फिर से मिज़ाज बरहम है