जो हो सके तो मयस्सर हमें तमाम रहो क़याम दिल में करो और यहीं मुदाम रहो ये कोई बात कि इस के हुए कभी उस के हमारे हो तो सरासर हमारे नाम रहो कभी तो आओ हमारी रसाई की हद में कभी कभी तो हमारे लिए भी आम रहो बईद कुछ भी नहीं है हमारी बात सुनो तनाब-ए-ख़ेमा-ए-इम्काँ ज़रा सा थाम रहो नहीं है चाह हमें मंज़िलों की कोई 'उफ़ुक़' सफ़र में साथ हमारे हर एक गाम रहो