जो हम तेरी आँखों के तारे हुए हैं कई रतजगों के सँवारे हुए हैं बराबर पे छूटी मोहब्बत की बाज़ी न जीते हुए हैं न हारे हुए हैं उन्हीं की नज़र में उतरना है हम को जो हम को नज़र से उतारे हुए हैं क़लम याद कॉफ़ी भरम चंद पन्ने बस इतने में भी दिन गुज़ारे हुए हैं ग़ज़ल का हुनर सिर्फ़ हासिल ग़मों का ये अशआर अश्कों से खारे हुए हैं