जो हुस्न-ओ-इश्क़ से अम्न-ओ-अमाँ में रहते हैं

जो हुस्न-ओ-इश्क़ से अम्न-ओ-अमाँ में रहते हैं
कहाँ के लोग हैं वो किस जहाँ में रहते हैं

कलाम-ए-पाक में है ज़िक्र-ए-हज़रत-ए-यूसुफ़
ये हुस्न-ओ-इश्क़ हर इक दास्ताँ में रहते हैं

इलाही अब से हसीनों को मेहरबान बना
कि तेरे बंदे उन्हीं की अमाँ में रहते हैं

तुम्हीं तो हो वो जो दर्द-ओ-अलम में रखते हो
हमीं तो हैं वो जो आह-ओ-फ़ुग़ाँ में रहते हैं

मुझे तो आप से मतलब है चाँद सूरज कौन
वो उन को चाहेंगे जो आसमाँ में रहते हैं

किधर किधर के चले आते हैं ये बे-वहदत
कहाँ कहाँ के तुम्हारे मकाँ में रहते हैं

उमीद रंज अलम ज़ब्त दर्द सब्र क़लक़
ये सब हमारे दिल-ए-ना-तवाँ में रहते हैं

हज़ारों काम हैं ऐसे भी देख ऐ ग़ाफ़िल
कि बा'द मर्ग भी लोग इस जहाँ में रहते हैं

ख़ुदा समझ ले लगाने बुझाने वालों को
ये ख़्वाह-मख़ाह यहाँ में वहाँ में रहते हैं

इशारे आप की अबरू के कोई क्या जाने
कि कितने ज़हर के तीर इस कमाँ में रहते हैं

हमारी ख़ास तरक़्क़ी है ख़ाना-वीरानी
कभी मकाँ में थे अब ला-मकाँ में रहते हैं

अगर समझ है तो दिल दे के लुत्फ़-ए-ज़ीस्त उठा
हज़ार फ़ाएदे उस इक ज़ियाँ में रहते हैं

ख़याल-ए-दोस्त में रहते हैं ऐ 'सफ़ी' जब तक
तो इस जहाँ में न हम उस जहाँ में रहते हैं


Don't have an account? Sign up

Forgot your password?

Error message here!

Error message here!

Hide Error message here!

Error message here!

OR
OR

Lost your password? Please enter your email address. You will receive a link to create a new password.

Error message here!

Back to log-in

Close