जूँ इबरत-ए-कोर जल्वा-गर हूँ अलबत्ता कुछ हूँ मैं पर किधर हूँ जूँ शीशा भरा हूँ मय से लेकिन मस्ती से मैं अपनी बे-ख़बर हूँ जो कहिए सो याँ से है फ़रौतर क्या जाने मैं किस मक़ाम पर हूँ ऐ सब्र तनिक तू रह कि तुझ से दो-चार क़दम मैं पेशतर हूँ चल दामन ओ आस्तीं तुझे क्या लब-ख़ुश्क हूँ या मैं चश्म-तर हूँ ऐ बख़्त-ए-सईद तेरी दौलत इक युम्न-ए-क़दम से हूँ जिधर हूँ परवाने की शब की शाम हूँ मैं या रोज़ की शम्अ की सहर हूँ जी माँगे है ख़ुश-दिली को 'क़ाएम' तू बैठ के रो मैं नौहागर हूँ