जो ज़ेहन-ओ-दिल के ज़हरीले बहुत हैं वही बातों के भी मीठे बहुत हैं चलो अहल-ए-जुनूँ के साथ हो लें यहाँ अहल-ए-ख़िरद सस्ते बहुत हैं मिरी बे-चेहरगी पर हँसने वालो तुम्हारे आइने धुँदले बहुत हैं ज़रा यादों के ही पत्थर उछालो नवाह-ए-जाँ में सन्नाटे बहुत हैं तिरी बाला-क़दी बदनाम होगी यहाँ के बाम-ओ-दर नीचे बहुत हैं शजर बे-साया हैं सूरज बरहना मगर हम अज़्म के पक्के बहुत हैं करो अब फ़त्ह का एलान 'अख़्तर' सरों से सुर्ख़-रू नेज़े बहुत हैं