जो ख़स-ए-बदन था जला बहुत कई निकहतों की तलाश में मैं तमाम लोगों से मिल चुका तिरी क़ुर्बतों की तलाश में तिरी आँख से मिरी आँख तक फ़क़त एक मंज़र-ए-ख़ाक है वही शाम-ए-तीरा-सरिश्त सी मिली मुद्दतों की तलाश में कोई ख़्वाब सर से परे रहा ये सफ़र सराब-ए-सफ़र रहा मैं शनाख़्त अपनी गँवा चुका गई सूरतों की तलाश में ये जो झाँकती है नफ़स नफ़स कोई मौज-ए-ख़ूँ सी उठी हुई बने ज़िंदगी की न क़त्ल-गह कहीं वहशतों की तलाश में मिरे ज़ख़्म अब तू सिएगा क्या मिरे आँसुओं को पिएगा क्या तिरे ज़ाइक़े ही बदल गए नई लज़्ज़तों की तलाश में