जो कोई कि यार-ओ-आश्ना है रुख़्सत की मिरी उसे दुआ है क्या बैठा है राह में मुसाफ़िर चलना ही यहाँ से पेश-पा है इमरोज़ जो हो सके सो कर ले फ़र्दा की ख़बर नहीं कि क्या है माशूक़ तो बेवफ़ा हैं पर उम्र उन से भी ज़ियादा बेवफ़ा है दुनिया में तो ख़ूब गुज़री हातिम उक़्बा में भी देखिए ख़ुदा है