जो कुछ है हुस्न में हर मह-लक़ा को ऐश-ओ-तरब वही है इश्क़ में हर मुब्तला को ऐश-ओ-तरब अगरचे अह्ल-ए-नवा ख़ुश हैं हर तरह लेकिन ज़ियादा उन से है हर बे-नवा को ऐश-ओ-तरब वो मय-कदे में हलावत है रिंद-ए-मय-कश को जो ख़ानक़ाह में है पारसा को ऐश-ओ-तरब रखे है हर तन-ए-उर्यां बरहना-पाई वही जो कुछ है साहिब-ए-अस्प-ओ-क़बा को ऐश-ओ-तरब कमाल-ए-क़ुदरत-ए-हक़ है 'नज़ीर' क्या कहिए जो शाह को है वही है गदा को ऐश-ओ-तरब