जो लोग दुश्मन-ए-जाँ थे वही सहारे थे मुनाफ़े थे मोहब्बत में ने ख़सारे थे हुज़ूर-ए-शाह बस इतना ही अर्ज़ करना है जो इख़्तियार तुम्हारे थे हक़ हमारे थे ये और बात बहारें गुरेज़-पा निकलीं गुलों के हम ने तो सदक़े बहुत उतारे थे ख़ुदा करे कि तिरी उम्र में गिने जाएँ वो दिन जो हम ने तिरे हिज्र में गुज़ारे थे अब इज़्न हो तो तिरी ज़ुल्फ़ में पिरो दें फूल कि आसमाँ के सितारे तो इस्तिआरे थे क़रीब आए तो हर गुल था ख़ाना-ए-ज़ंबूर 'नदीम' दूर के मंज़र तो प्यारे प्यारे थे