जो माहताब में है वक़्त-ए-शब जमाल तिरा है सुब्ह-दम वही ख़ुर्शेद में जलाल तिरा सबा में है जो लताफ़त तिरी लताफ़त है जमाल है जो गुलों में है वो जमाल तिरा खिंची हुई चली आती है इस में इक दुनिया समा रहा है मिरे दिल में यूँ ख़याल तिरा फ़ना से काम तुझे क्या कि जावेदाँ तू है नहीं ज़वाल से नादिम कभी कमाल तिरा है ज़र्रा ज़र्रा 'मुनव्वर' तिरी तजल्ली से कुछ एक मेहर-ए-मुबीं में नहीं जलाल तिरा