जो मैं न हूँ तो करो तर्क नाज़ करने को

जो मैं न हूँ तो करो तर्क नाज़ करने को
कोई तो चाहिए जी भी नियाज़ करने को

न देखो ग़ुंचा-ए-नर्गिस की ओर खुलते में
जो देखो उस की मिज़ा नीम-बाज़ करने को

न सोए नींद भर इस तंगना में ता न मूए
कि आह जा न थी पा के दराज़ करने को

जो बे-दिमाग़ी यही है तो बन चुकी अपनी
दिमाग़ चाहिए हर इक से साज़ करने को

वो गर्म नाज़ हो तो ख़ल्क़ पर तरह्हुम कर
पुकारे आप अजल एहतिराज़ करने को

जो आँसू आवें तो पी जा कि ता रहे पर्दा
बला है चश्म-ए-तर इफ़शा-ए-राज़ करने को

समंद नाज़ से तेरे बहुत है अर्सा तंग
तनिक तो तर्क कर इस तर्क ताज़ करने को

बसान-ए-ज़र है मिरा जिस्म-ए-ज़ार सारा ज़र्द
असर तमाम है दिल के गुदाज़ करने को

हनूज़ लड़के हो तुम क़दर मेरी क्या जानो
शुऊ'र चाहिए है इम्तियाज़ करने को

अगरचे गुल भी नुमूद उस के रंग करता है
व-लेक चाहिए है मुँह भी नाज़ करने को

ज़्यादा हद से थी ताबूत-ए-'मीर' पर कसरत
हुआ न वक़्त मुसाइद नमाज़ करने को


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