जो मस्त-ए-जाम-ए-बादा-ए-इरफ़ाँ न हो सका वो जानवर ही रह गया इंसाँ न हो सका जो भी शरीक-ए-महफ़िलए-ए-रिंदाँ न हो सका वो बेवक़ूफ़ कामिल-ए-ईमाँ न हो सका वाइज़ भी हैं वो ज़ात-ए-गिरामी कि अल-हज़र हम-पल्ला जिन का दहर में शैताँ न हो सका फ़ितरत बदल सकी न कभी मेरे दोस्त की लहबड़ किसी तरह से भी टोइयाँ न हो सका दामान-ए-हश्र आ ही गया काम हश्र में नेक-टाई बन गई जो गिरेबाँ न हो सका इंसानों के ज़मीर बिके कौड़ियों के मोल ग़ल्ला मगर गिराँ रहा अर्ज़ां न हो सका ये कश्मकश ज़माने की अल्लाह की पनाह जीना तो जीना मरना भी आसाँ न हो सका वो होंगे क्या किसी से ज़माने में हम-नबर्द जिन पागलों से चाक गिरेबाँ न हो सका बतला रही है शैख़ की तक़रीर-ए-मुज़्महिल कुछ आज हलवे-मांडे का सामाँ न हो सका एड़ी रगड़ के नज्द में दीवाना मर गया और उस के नाम अलॉट बयाबाँ न हो सका रहज़न लिबास-ए-राहबरी में न छुप सका आलू ने लाख चाहा पे घोईआँ न हो सका दिलचस्प हो सका न कभी शैख़ का बयाँ कव्वा ग़रीब मुर्ग़-ए-ख़ुश-अलहाँ न हो सका ऐ 'शौक़' रोना आता है उस बद-नसीब पर जो ख़ाक-रूब-ए-कूचा-ए-जानाँ न हो सका