जो मेरे दिल में सहव तिरी याद से हुआ नाम उस का महव आलम-ए-ईजाद से हुआ बरबाद ख़ाक-ए-दिल है तो एहसान-ए-हुस्न क्या मैं सर-बुलंद इश्क़ की उफ़्ताद से हुआ ऐसे भी हैं कि जिन को रिहाई की फ़िक्र है शर्मिंदा मैं तो ज़हमत-ए-सय्याद से हुआ नाक़ूस और अज़ाँ की बिना इश्क़ से पड़ी फ़रियाद का चलन मिरी फ़रियाद से हुआ इश्क़-ओ-हवस ने मिल के बनाई है बज़्म-ए-हुस्न ये इत्तिहाद मजमा-ए-अज़दाद से हुआ दुनिया-ए-बे-सबात का क़िस्सा था मुख़्तसर तूल इतना मेरी क़ैद की मीआ'द से हुआ