जो मेरी रूह की गहराइयों में उतरा था वो एक नर्म मुलाएम हवा का झोंका था उस एक लम्स के बारे में क्या बताऊँ तुम्हें ठिठुरती सर्दियों की तेज़ धूप जैसा था मैं इक ज़मीन बना घूमता था जिस के सबब वो एक गुल था मिरे चाँद पर जो खिलता था वो एक बाग़ था जिस में थीं दो हसीं झीलें मैं उन को देखते ही डूब डूब जाता था उस एक क़स्र को अंदर से झाँकने की तलब मिरी नज़र ने बड़ा सख़्त वक़्त काटा था मैं उम्र भर के लिए ख़ुद को भूल बैठा था कोई पुकार नहीं थी वो एक नश्शा था मैं रौशनी से मिला था बस इतना याद रहा फिर उस के बाद से चारों तरफ़ अंधेरा था ये और बात कि वो मेरा हो नहीं पाया ख़ुदा ने उस को मिरे वास्ते ही भेजा था