जो मिरी आरज़ू नहीं करता उस की मैं जुस्तुजू नहीं करता हिज्र-ए-जानाँ में अपने अश्कों से कौन है जो वुज़ू नहीं करता वो तो तेरा कलीम था वर्ना सब से तू गुफ़्तुगू नहीं करता सय्यद-उल-अम्बिया थे वो वर्ना सब को तू रू-ब-रू नहीं करता तेरी निस्बत मिली मुझे जब से मैं कोई आरज़ू नहीं करता हर घड़ी जिस की बात करता हूँ मुझ से वो गुफ़्तुगू नहीं करता दर-ब-दर यूँ नहीं भटकता मैं जो फ़रामोश तू नहीं करता हो नहीं पाती शाइरी 'अफ़ज़ल' नज़्र जब तक लहू नहीं करता