जो मुहिब्बान-ए-वफ़ा हैं वो वफ़ा करते हैं कुछ ग़रज़ इस से नहीं कोई जफ़ा करते हैं ख़ूगर-ए-दर्द हैं सब कुछ वो सहा करते हैं दुश्मनों से नहीं मतलब कि वो क्या करते हैं हम जिगर थाम के जब आह-ए-रसा करते हैं इक क़यामत में क़यामत ही बपा करते हैं चारागर का हो भला कौन रहीन-मिन्नत हम तो ख़ुद अपनी ही ज़ख़्मों को सिया करते हैं साज़ हो ऐश का या सूर-ए-मुसीबत दम-साज़ अब तो हर हाल में हम शुक्र अदा करते हैं आप शरमा गए क्यूँ देख के रक़्स-ए-बिस्मिल क्या कहीं तीर-ए-नज़र चल के ख़ता करते हैं आतिश-ए-इश्क़-ए-वतन रखते हैं दिल में रौशन अपनी ही आग में जल जल के बुझा करते हैं हर हुबाब-ए-लब-ए-जू जल्वा-गह-ए-हस्ती है नक़्श बन बन के ज़माने से मिटा करते हैं 'शौक़' सा बंदा-ए-आज़ाद ज़माने में कहाँ आज सुनते हैं कि वो याद-ए-ख़ुदा करते हैं