जो मुश्त-ए-ख़ाक हो उस ख़ाक-दाँ की बात करो ज़मीं पे रह के न तुम आसमाँ की बात करो कसी की ताबिश-ए-रुख़्सार का कहो क़िस्सा किसी के गेसू-ए-अम्बर-फ़िशाँ की बात करो नहीं हुआ जो तुलूअ' आफ़्ताब तो फ़िलहाल क़मर का ज़िक्र करो कहकशाँ की बात करो रहेगा मश्ग़ला-ए-याद-ए-रफ़्तगाँ कब तक गुज़र रहा है जो उस कारवाँ की बात करो यही जहान है हंगामा-ज़ार-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ यहीं के सूद यहीं के ज़ियाँ की बात करो अब इस चमन में न सय्याद है न है गुलचीं करो तो अब सितम-ए-बाग़बाँ की बात करो