जो फिरा के उस ने मुँह को ब-क़फ़ा नक़ाब उल्टा उधर आसमान उल्टा उधर आफ़्ताब उल्टा न क़फ़स में ऐसे मुझ को तू असीर कीजो सय्याद कि घड़ी घड़ी वो होवे दम-ए-इज़्तिराब उल्टा मरे हाल पर मुग़ाँ ने ये करम किया कि हंस हंस मिरे नंगे सर पे रक्खा क़दह-ए-शराब उल्टा तिरा तिश्ना-लब जहाँ से जो गया लहद पे उस की पस-ए-मर्ग भी किसी ने न सबू-ए-आब उल्टा मिरी आह ने जो खोली ये क़ुशून-ए-अश्क बैरक़ वहीं बर्क़-ओ-रा'द ले कर इलम۔ए۔सहाब उल्टा जो ख़याल में किसू के शब-ए-हिज्र सो गया हो न हो सुब्ह को इलाही कभी उस का ख़्वाब उल्टा मिरे दम उलटने की जो ख़बर उस को दी किसी ने वहीं नीम रह से क़ासिद ब-सद इज़्तिराब उल्टा जो अली का हुक्म नाफ़िज़ न फ़लक पे था तो फिर क्यों ब-गह-ए-ग़ुरूब आया निकल आफ़्ताब उल्टा अगर इस में तू सह-गज़ला जो कहे तो काम भी है नहीं 'मुसहफ़ी' मज़ा क्या जो दो रू कबाब उल्टा