जो रंज नविश्ते में है क्यूँकर न मिलेगा लिखवाएँगे नामा तो कबूतर न मिलेगा जिस रात नक़ाब उस मह-ए-कामिल ने उलट दी तारों को निशान-ए-मह-ए-अनवर न मिलेगा अब्र-ए-शब-ए-फ़ुर्क़त है बंधे आँसुओं का तार इस तरह का वक़्त ऐ मिज़ा-ए-तर न मिलेगा काहीदगी-ए-जिस्म अगर यूँ ही रहेगी हम को भी हमारा तन-ए-लाग़र न मिलेगा इंसाफ़ को समझो ख़िज़र-ए-राह-ए-हिदायत ऐ 'रश्क' अब ऐसा कोई रहबर न मिलेगा