जो रुख़ से पर्दा उठाओ तो कोई बात बने हमें भी जल्वा दिखाओ तो कोई बात बने हमारे सामने आओ तो कोई बात बने हमारे होश उड़ाओ तो कोई बात बने सुना है तूर पे मूसा गिरे थे सज्दे में हमें भी सज्दा कराओ तो कोई बात बने ग़मों की आग है दिल में जहान जलता है ज़रा ये आग बुझाओ तो कोई बात बने अजीब ढंग से तोड़ा है दिल मोहब्बत ने इसे भी आस बँधाओ तो कोई बात बने बहुत उदास है तारीक है जहाँ मेरा कहीं से रौशनी लाओ तो कोई बात बने ख़िरद के दीप बुझे चार सू अंधेरा है जलाओ दिल ही जलाओ तो कोई बात बने अज़ल से नाम सुना है शराब-ए-वहदत का कभी हमें भी पिलाओ तो कोई बात बने यूँही गुज़ार दी जो ज़िंदगी तो क्या हासिल किसी के काम जो आओ तो कोई बात बने सुना है हम ने दिखाते हो मोजज़े अक्सर मैं गिर गया हूँ उठाओ तो कोई बात बने वो जिस में नाम तुम्हारा हमारा आता है वही फ़साना सुनाओ तो कोई बात बने तुम्हारा तर्क-ए-मोहब्बत भी ना-मुकम्मल है ख़याल में भी न आओ तो कोई बात बने फ़रेब खाए हैं 'हैरत' तरह तरह के मगर फ़रेब-ए-इश्क़ भी खाओ तो कोई बात बने