जो सैर-ए-अंजुम-ओ-ख़ुर्शीद का इरादा किया ग़ुबार रख़्त-ए-सफ़र और जुनून जादा किया बहुत से काम किए हैं तिरी तलब में मगर ये कार-ए-दर्द ज़रूरत से कुछ ज़ियादा किया फ़ज़ा-ए-होश-ओ-ख़िरद में बड़ा अंधेरा था सो हम ने आँख में रौशन चराग़-ए-बादा किया बढ़ा जो ग़म किसी लम्हे तिरी जुदाई का तो हम ने जाँ के ज़ियाँ से भी इस्तिफ़ादा किया वो रंग-ए-हुस्न भी सादा था सामने अपने सो हर्फ़-ए-अर्ज़-ए-तमन्ना भी हम ने सादा किया