जो शब हुई तो नज़ारे उतर के आए हैं ज़मीं पे देखो सितारे उतर के आए हैं किसी की नींद अभी तक है बीच दरिया में किसी के ख़्वाब किनारे उतर के आए हैं हवा के लम्स ने आवाज़ दी है माज़ी को बुझे से दिल पे शरारे उतर के आए हैं ये किस का ज़िक्र हवाओं ने आज छेड़ा है लहूँ के आँख से धारे उतर के आए हैं भटक रहे थे ख़लाओं में चाँद-तारे जो तिरी तलाश में सारे उतर के आए हैं फ़लक को देख के 'ज्योति' यही हुआ महसूस फ़लक पे रंग तुम्हारे उतर के आए हैं