जो तसव्वुर में है उस को कोई क्या रौशन करे अक्स-ए-गुम-गश्ता को कैसे आईना रौशन करे हम गिराँ-गोशों में हर्फ़-ए-मो'तबर कहने को हैं देखिए किस की समाअत ये सदा रौशन करे डूब जाए जब कभी तारीकियों में रौशनी इक दिया सीने में फिर उस की नवा रौशन करे मुंतज़िर हैं सब हवा के चाँद चेहरे और चराग़ देखिए ये क्या बुझा दे और क्या रौशन करे आसमाँ को चूमते शहरों में फ़ुर्सत है किसे इस खंडर में कौन ये बुझता दिया रौशन करे धीरे धीरे बुझ गई जितनी दिलों में आग थी अब यहाँ क्या है जिसे दस्त-ए-दुआ रौशन करे रात के जंगल में मैं हूँ और तिरी मुबहम सी याद इक दिया है ये कहाँ तक रास्ता रौशन करे